कोई अटका हुआ है पल शायद वक़्त में पड़ गया है बल शायद


कोई अटका हुआ है पल शायद 
वक़्त में पड़ गया है बल शायद 

लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद
वो अकेले हैं आजकल शायद

दिल अगर है तो दर्द भी होगा 
इसका कोई नहीं है हल शायद 

जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम
उन से होता नहीं अमल शायद

(सवाब-ए-रहम-ओ-करम = अच्छे कर्मो का पुण्य)

आ रही है जो चाप क़दमों की 
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद 

राख़ को भी कुरेद कर देखो 
अभी जलता हो कोई पल शायद 

चाँद डूबे तो चाँद ही निकले
आप के पास होगा हल शायद

- गुलज़ार साहब

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