Posts

Showing posts from October, 2018

फिर रस्ते को रस्ते भर उलझाया हमने

एक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हमने💝 पहले  यार  बनाया,  फिर  समझाया   हमने💝 ख़ुद भी   आख़िरकार उन्हीं   वादों से बहले💝 जिनसे  सारी   दुनिया को   बहलाया  हमने💝 भीड़   ने यूं ही रहबर   मान लिया   है वरना💝 अपने अलावा  किसको घर पहुंचाया हमने💝 मौत   ने   सारी रात   हमारी   नब्ज़ टटोली💝 ऐसा   मरने   का   माहौल   बनाया    हमने💝 घर से निकले, चौक गए,  फिर पार्क में बैठे💝 तन्हाई को   जगह जगह   बिखराया  हमने💝 भूले भटकों सा  अपना हुलिया था लेकिन💝 दश्त को  अपनी वहशत से चौंकाया हमने💝 जब 'शारिक़' पहचान गए मंज़िल की हक़ीक़त💝 फिर   रस्ते   को   रस्ते भर    उलझाया    हमने💝 - शारिक़ कैफ़ी साहब 【 (रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक)】