फिर रस्ते को रस्ते भर उलझाया हमने
एक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हमने💝 पहले यार बनाया, फिर समझाया हमने💝 ख़ुद भी आख़िरकार उन्हीं वादों से बहले💝 जिनसे सारी दुनिया को बहलाया हमने💝 भीड़ ने यूं ही रहबर मान लिया है वरना💝 अपने अलावा किसको घर पहुंचाया हमने💝 मौत ने सारी रात हमारी नब्ज़ टटोली💝 ऐसा मरने का माहौल बनाया हमने💝 घर से निकले, चौक गए, फिर पार्क में बैठे💝 तन्हाई को जगह जगह बिखराया हमने💝 भूले भटकों सा अपना हुलिया था लेकिन💝 दश्त को अपनी वहशत से चौंकाया हमने💝 जब 'शारिक़' पहचान गए मंज़िल की हक़ीक़त💝 फिर रस्ते को रस्ते भर उलझाया हमने💝 - शारिक़ कैफ़ी साहब 【 (रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक)】