तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर, मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ।
भोर का वहम पाले उनको ज़माना हुआ। कब सुनहरी धूप का गुफाओं में जाना हुआ। रख उम्मीद कोई दिया तो जलेगा कभी, भूख के साथ पैदा हमेशा ही दाना हुआ। मर्यादा में था तो सुरों में न ढल सका, शब्दों को नंगा किया तो ये गाना हुआ। तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर, मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ। हो आपको ही मुबारक ये मख़मली अहसास, जो चुभता ही नहीं वो भी क्या सिरहाना हुआ। थोड़ी सी नींद जब चिंताओं से मांगी उधार, लो सज-धज के कमबख़्त का भी आना हुआ। जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई, वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।। - मुनव्वर राना साहब