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Showing posts from August, 2018

तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर, मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ।

भोर का वहम पाले उनको ज़माना हुआ। कब सुनहरी धूप का गुफाओं में जाना हुआ। रख उम्मीद कोई दिया तो जलेगा कभी, भूख के साथ पैदा हमेशा ही दाना हुआ। मर्यादा में था तो सुरों में न ढल सका, शब्दों को नंगा किया तो ये गाना हुआ। तरकश उनका तीरों से हो गया ख़ाली मगर, मेरे हौसले ने अभी भी है सीना ताना हुआ। हो आपको ही मुबारक ये मख़मली अहसास, जो चुभता ही नहीं वो भी क्या सिरहाना हुआ। थोड़ी सी नींद जब चिंताओं से मांगी उधार, लो सज-धज के कमबख़्त का भी आना हुआ। जिसमें दिल की धड़कन ही न शामिल हुई, वो भला क्या हाथों में मेंहदी लगाना हुआ।। - मुनव्वर राना साहब

राज़ मेरे दिल का अब जो आम है

राज़ मेरे दिल का अब जो आम है  ये यक़ीनन आँसुओं का काम है  चारागर तेरा यहाँ क्या काम है  यार की तस्वीर से आराम है  अश्क तो ख़ुशियों की चाहत ने दिये  ग़म बेचारा मुफ़्त में बदनाम है  बोझ बन जाती है दिल पर हर उमीद  ना-उमीदी में बड़ा आराम है  आज इधर का रुख़ किया क्यों ज़िंदगी ! मुझसे ऐसा क्या ज़रूरी काम है  अब तो अख़बारों में पढ़ लेता हूँ मैं  आज मुझ पर कौन सा इल्ज़ाम है - राजेश रेड्डी साहब 【 (चारागर = चिकित्सक)】

रक्षाबंधन पर्व

किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा, अगर बहनें नहीं होगी तो राखी कौन बाँधेगा।। - मुनव्वर राणा साहब सम्माननीय सभी मित्र बंधुओं को रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं।।🙏💐🌹🙂

कोई अटका हुआ है पल शायद वक़्त में पड़ गया है बल शायद

कोई अटका हुआ है पल शायद  वक़्त में पड़ गया है बल शायद  लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद वो अकेले हैं आजकल शायद दिल अगर है तो दर्द भी होगा  इसका कोई नहीं है हल शायद  जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम उन से होता नहीं अमल शायद (सवाब-ए-रहम-ओ-करम = अच्छे कर्मो का पुण्य) आ रही है जो चाप क़दमों की  खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद  राख़ को भी कुरेद कर देखो  अभी जलता हो कोई पल शायद  चाँद डूबे तो चाँद ही निकले आप के पास होगा हल शायद - गुलज़ार साहब

जो दिल पे असर करती ऐसी हो फ़ुग़ाँ कोई

जो दिल पे असर करती ऐसी हो फ़ुग़ाँ कोई वो दर्द कहाँ ढूंढे है दर्द कहाँ कोई (फ़ुग़ाँ = आर्तनाद, दुहाई) ख़ामोश ही रह कर मैं कह डालूंगा अफ़साना हालात बयां कर दे ऐसी है ज़ुबाँ कोई अब तक जो गुज़ारी है किस तरह भुलाऊं मैं मेरी ये कहानी है किरदार रवां कोई चुपचाप ही मर जाऊँ या दिल की सदा कह दूँ इस दिल की सदा सुन ले ऐसा है यहाँ कोई 'अरमान' सुलगते दिन सुलगी हैं सभी रातें मिल जाए क़रार-ए-दिल ऐसा हो समाँ कोई - अश्वनी त्यागी 'अरमान'