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गर्दिशों का दौर

अहवाले जिन्दगी जो सुनाया तो रो दिये नजर जानिबे दामन जो झुकाया तो रो दिये । हंसते थे जो हमारे बुरे वक्त में लोग गर्दिश का दौर उनपे भी आया तो रो दिये ।। बड़ी जिद की उन्होंने कि जरा जख्म तो देखें, हमने जख्म से जो बैरहन हटाया तो रो दिये ।। मैने सहे हैं जुल्म बहुत अपनों के दोस्तों तुम पे जरा दुनिया ने सितम ढाया तो रो दिये ।। कांटों के बीच उम्रभर हंसते रहे हैं हम हाथों में किसी ने हमको उठाया तो रो दिये ।। करते रहे जो ऐश विरासत की दौलत पर  दो पैसे अपने हाथों कमाया तो रो दिये ।। चले थे ये सोच कर कि मुड़कर न देखेंगे वक्त ने फिर मोड़़ ली मुड़कर भी तो रो दिये ।। -  रमेश चन्द्र सिंह प्रियतम साहब

भीतर क्या क्या हो रहा

भीतर क्या क्या हो रहा ऐ दिल कुछ तो बोल एक आँख रोए बहुत एक हँसे जी खोल।। ~ भगवान दास एजाज़ साहब

हँस के फ़रमाते है

हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी क्यूँ तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी।। ~अमीर मीनाई साहब