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Showing posts from May, 2018

जान के लिये

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वल्लाह रे  मुंतशिर है  इंतजार में,  जाँ हथेली पर लिये जान के लिये।। - निलेश गौड़

नवरात्र त्यौहार

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माँ ममता मयी शेरा वाली है कण कण में जिसका प्यार, वो कण कण की पाप विनाशी है जिसका कण कण में है दरबार।।  - निलेश गौड़

किताबें

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है पूछती किताबें नाम मुझ से मेरा,  क्या कहु उसे मै भूल गया हूँ सब।।  - निलेश गौड़

अन्न

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करता हूँ दुआ मै! न कोई कभी भूखा कभी सोए, रब करतार नबी खुदा करे! जुदा किसीसे  अन्न कभी न होए।। - निलेश कुमार गौड़

माँ का आँचल

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माँ का आँचल सुना रह गया!  आशियाँ आलिशान में,  तितली इक बचपन चुराकर ले गई!  जवानी के मैदान में।।  - निलेश कुमार गौड़  Maa Ka Aanchal Suna Rah Gaya!  Aashiya Aalishaan me,  Titli Ek Bachpan Churakar Le Gai!  Jawaani Ke Maidan Me …  - Nilesh Kumar Goud

दरवाज़ा कोई

‎ दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे  बेखौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे  आँखों को अता ख्वाब किए शुक्रिया लेकिन पैकर भी कोई ख्वाबों में ढलने के लिए दे  पानी का ही पैकर किसी परबत को अता कर  इक बूँद ही नदी को उछलने के लिए दे  सहमी हुई शाखों को ज़रा सी कोई मुहलत  सूरज़ को सवारी को निगलने के लिए दे सब वक़्त की दीवार से सिर फोड़ रहे हैं रोज़ाना ही कोई भाग निकलने के लिए दे  सैलाब में साअत के मुझे फैंकने वाले  टूटा हुआ इक पल ही संभलने के लिए दे  महफूज़ जो तरतीबे अनसीर से है असरार तो खोल को इक काँच पिघलने के लिए दे  तखईल को तखलीक की तौफ़ीक़ अता कर फिर पहलू से इक चीज़ निकलने के लिए दे।। ~शीन काफ़ निज़ाम साहब

इश्क़ करते है कब! सुबह दोपहर रात तु काल बता

क्यों ख़ुश्क ख़ुश्क है इतना! सावन झाल बता, हमनवां  से  कुछ   न   छुपा!  सुर  ताल  बता, वो लहरे तरंगे किलकारी दूर किनारों से रहती है,  आ नूर तु मुझसे  मिल   या मुझको मशाल बता, चिंता  में  तेरी  सोता  खुली  आँखों  से! हूँ मै,  तेरी तीरगी का सागर है कितना विशाल बता, काट दिया है  हमने परों को  और है पैरो में बेड़ियाँ,  चल पडूंगा मै अपने शब्दों से तु मुझ को चाल बता, सुनना है किस्से मोहब्बत के, मुझ को मुद्दतो अपने! लेकिन, इश्क़  करते  है  कब!  सुबह  दोपहर  रात  तु  काल बता, इश्क़ मुश्क़ कि बातें लगने लगी! है पुरानी मुझे अब,  नफ़रत करना है मुझे तुझ से  तु तेरा  ख़याल  बता, ये हाल  मेरे हाल से मेल खाते नही! सुन,  मुझे अपने ही  तु  कुछ  हाल चाल  बता, है   खुश्क   सा   बहुत   नगर ...

बाँसुरी चली आओ

डॉ  कुमार विश्वास  साहब तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है रात की उदासी को याद संग खेला है कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।।

कोई दीवाना कहता है

डॉ.  कुमार विश्वास  साहब कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है ! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !! मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है ! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !! मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है ! कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !! यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं ! जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !! समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता ! यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !! मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले ! जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

हमनवां

है ख़ामोश तु क्यों गुल राज़ बता, हमनवा से ना छुपा हर बात बता,  चाहती  है  बेहद  तन्हाईया  भी मुझे,  आ मुझ को  तु  मिल  जज़्बात बता,  ये हाल  मेरे हाल  से  मेल  खाते नही जाँ,  चल  तु  अपने ही  कुछ  हाल चाल  बता,  है   खुश्क   सा   बहुत    नगर   दिल   का   मेरे, चाहत बरसी थी कब दिन, महीना, साल, बता।  - निलेश गौड़

Good Morning

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क़ाबिल

छुप  छुप   कर   शबे   ख्व़ाब   क्यों  आती   है  रोज़, क्यूँ लड़ती झगड़ती नाज़ दिखाती छोड़ जाती है रोज़, रहा  फ़र्क  नही  ज्यादा  है  मेरे उस के  दरमियाँ, रूठ भी जाती वो अक्सर मान भी जाती है रोज़, नशीला जाम इक भी  क्यूं न मुझ को मयस्सर, है  हाथो में  खाली प्याला  चढ़ जाती  है  रोज़, है बैचेनी कितनी दिल मे और कितने तन्हा हम, जलते है  शमा  बन कर  पिघल  जाते  है  रोज़, चाहता हूँ   भौरा बन  मे  संग गुल के महकना, गरजती सबा घटा सी  छुप  मै  जाता  हूँ रोज़, वो ऋतू रानी बनकर गम कि बरखा करती है, मै प्याला  गम का  लेकर घूंट लगाता  हूँ रोज़, मै   प्रेम   धून   बन  कर  रहा   रिश्ते   बनाता, सब  आते  जाते  मिलते   तन्हा तन्हा  मै रोज़, क्या पाया तुने संगदिल छत  गिराकर इश्...

Kitabain

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love

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love

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आ इश्क़ करे कुछ कज़ा से पहले,  तु  इतनी  ही   सजा  मुझे  दे  जा,  आ  उड़ती  है तो  उड़  चल  संग,  वरना मुझको तु उड़ा कर ले जा। - निलेश गौड़

Attitude

दिलों के घर से जब हम निकाले जायेंगे,  फ़लक पे बनकर अब्र से हम छा जायेंगे,  कतरा कतरा बरसेंगे लेकिन सैलाब की तरह,  प्यासा मगर हशिनाओ को हम छोड़ जायेंगे।। - Nilesh Goud

Love

जादू  फूँक  देंगे   हम!   तेरे  और   मेरे  इश्क़  में,  ज़रा तू इतना तो समझा! बीमारी तुझमे या मुझमे।।  -  Nilesh Goud

Taqdeer

क़िस्मत की  लकीरे तेरे हाथों में  नही #हुकुम,  ले कागज़ कलम दबाद और लिख दे तक़दीर।।  - निलेश गौड़

Maa

छुप  छुप   कर   शबे   ख्व़ाब   क्यों  आती   है  रोज़, क्यूँ लड़ती झगड़ती नाज़ दिखाती छोड़ जाती है रोज़, रहा  फ़र्क  नही  ज्यादा  है  मेरे उस के  दरमियाँ, रूठ भी जाती वो अक्सर मान भी जाती है रोज़, नशीला जाम इक भी  क्यूं न मुझ को मयस्सर, है  हाथो में  खाली प्याला  चढ़ जाती  है  रोज़, है बैचेनी कितनी दिल मे और कितने तन्हा हम, जलते है  शमा  बन कर  पिघल  जाते  है  रोज़, चाहता हूँ   भौरा बन  मे  संग गुल के महकना, गरजती सबा घटा सी  छुप  मै  जाता  हूँ रोज़, वो ऋतू रानी बनकर गम कि बरखा करती है, मै प्याला  गम का  लेकर घूंट लगाता  हूँ रोज़, मै   प्रेम   धून   बन  कर  रहा   रिश्ते   बनाता, सब  आते  जाते  मिलते   तन्हा तन्हा  मै रोज़, क्या पाया तुने संगदिल छत  गिराकर इश्...